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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझ को है फ़ख़्र कि उस क़ौम से निस्बत है मिरी
फ़ातिमा मरियम-ओ-सीता सी हैं रहबर जिस की
हिना रिज़्वी
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-रंग-ओ-बू पर अक्स-ए-गुलख़न ता-कुजा?
पाक सीता के लिए ज़िंदान-ए-रावण ता-कुजा?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुझ में मरियम का तक़द्दुस था तो सीता का वक़ार
कर दिया ज़र ने मुझे रौनक़-ए-हुस्न-ए-बाज़ार