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नज़्म
ओछा हथियार इस्तिमाल न करने का फ़ैसला किया था
लेकिन जूँही मेरे गिर्द हिसार तंग होने लगता है
जावेद शाहीन
नज़्म
और ऐसे साक़ित-उल-औज़ान कमतर शे'र पढ़ते हैं
कि जिन में लड़कियों लड़कों का ओछा ज़िक्र होता है
जब्बार वासिफ़
नज़्म
दिल में इक शोला भड़क उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
मेरा पैमाना छलक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
ये हिन्दी वो ख़ुरासानी ये अफ़्ग़ानी वो तूरानी
तू ऐ शर्मिंदा-ए-साहिल उछल कर बे-कराँ हो जा