aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सोचता हूँ कि तुम्हें कौन सा तोहफ़ा भेजूँअपने होंटों की जलन अपनी निगाहों की थकन
अब रहा कौन मुझे आस दिलाने वालाघुप अँधेरों में दिया घर का जलाने वाला
दोनों को बस एक ही ज़िद हैमैं क्यों उस को याद दिलाऊँ
कितना दिलकश था समाँ आज से पहले पहलेकितना रंगीं था जहाँ आज से पहले पहले
ज़िंदगी के मेले मेंख़्वाहिशों के रेले में
मुझे इक नज़्म लिखनी हैमगर तुम पर नहीं लिखनी
ऐ ख़ुदा-ए-दो-जहाँ ऐ मालिक-ए-हर-दो-सराक्या तुझे आदम की लग़्ज़िश का ज़रा एहसास है
कि औलाद भी दी दिए वालदैनअलिफ़ लाम मीम काफ़ और ऐन ग़ैन
भला शबाब ओ आशिक़ीअलग हुए भी हैं कभी
मुझ से अलग इस एक बरस मेंक्या क्या बीती तुम पे न जाने
मिरी अलग है दास्ताँवो आँखें जिन में ख़्वाब हैं
मैं अलग-थलग सब सेबारहवें खिलाड़ी को
लब को खोलें न वोदिल अलग बात है
उन की मंज़िल दिगर थीअलग चाह थी
जो तुम्हारे प्यार से ले रही हों मुशाबहतेंजो हो सब से ज़ियादा बुलंद-ओ-बाला अलग-थलग
अलग अलग मकानों में सच्चाइयाँ बिखेरनाज़ियादा बेहतर है
दरिया की मौजों से अलगया इक बत-ए-नज़्ज़ारा-बीं
और रिश्तों से अलग भी है मिरी इक हस्तीजो फ़क़त घर में ही महदूद नहीं रह सकती
और इस से अलग हो तोठंडक को पोर पोर में उतरता देखो
इतना महफ़ूज़ कि दुश्मन तो अलगदोस्त भी पास नहीं आ सकते
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