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नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तुम्हें बहका न पाए और बैरूनी न कर डाले
मैं सारी ज़िंदगी के दुख भुगत कर तुम से कहता हूँ
जौन एलिया
नज़्म
पर मिरे गीत तिरे दुख का मुदावा ही नहीं
नग़्मा जर्राह नहीं मूनिस-ओ-ग़म ख़्वार सही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
गो आग से छाती जलती थी गो आँख से दरिया बहता था
हर एक से दुख नहीं कहता था चुप रहता था ग़म सहता था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी