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नज़्म
गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से
जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फिराया फ़िक्र-ए-अज्ज़ा ने उसे मैदान-ए-इम्काँ में
छुपेगी क्या कोई शय बारगाह-ए-हक़ के महरम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब चेहरा उस का उजला हो या आँखें उस की हों गहरी
या उस के प्यारे होंटों की हर बात लगे ठहरी-ठहरी
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
यही क़ौमों को पहुँचाता है बाम-ए-औज-ओ-रिफ़अत पर
यही मुल्कों के अंदर फूँकता है रूह-ए-बेदारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
हर तरफ़ सोग में डूबा हुआ मेरा माहौल
मेरा उजड़ा हुआ घर 'मीर' के घर के मानिंद
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
सब उजला शहर उमँड आया शलवार सजा दस्तार लगा
इस भीड़ के बिफरे तूफ़ाँ में जो डूब गया सो पार लगा
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
बा'द गाँधी के न सुन हम ने समाँ देखा क्या
फ़स्ल-ए-गुल आते ही हर बाग़-ओ-चमन उजड़ा क्या