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नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हाल के सिक्के को माज़ी का जो सिक्का देख ले
सौ रूपे के नोट के मुँह पर दो अन्नी थूक दे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हुकूमत के मज़ाहिर जंग के पुर-हौल नक़्शे हैं
कुदालों के मुक़ाबिल तोप बंदूक़ें हैं नेज़े हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरे संगी मेरे साथी तेरे कारन छूट गए हैं
तेरे कारन जग से मेरे कितने नाते टूट गए हैं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
नोट के अलावा मेरी ज़िंदगी का कोई नायक नहीं
ज़िंदगी में मेरा न है अस्तित्व न कोई ईमान
अंकिता गर्ग
नज़्म
मैं अपने बाप दादा के ही नक़्श-ए-पा पे चलता हूँ
मगर बस फ़र्क़ इतना है वो गुंडे थे मैं नेता हूँ