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नज़्म
जब साया शाख़-ए-गुल अफ़ई बन कर रेंगे
हर आहट के नादीदा हाथ में चाक़ू का फल खुला हुआ
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
तुझ पे उट्ठी हैं वो खोई हुई साहिर आँखें
तुझ को मालूम है क्यूँ उम्र गँवा दी हम ने