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नज़्म
मिरे घर का वही सरनाम-तर है जो भी बिस्मिल है
गुज़श्त-ए-वक़्त से पैमान है अपना अजब सा कुछ
जौन एलिया
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
वही गेसू वही नज़रें वही आरिज़ वही जिस्म
मैं जो चाहूँ तो मुझे और भी मिल सकते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नज़र के पास हों न हों मगर फिर भी तसल्ली है
वही मेहमान ख़्वाबों के जो दिल के पास रहते हैं