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नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो तुम्हारे प्यार से ले रही हों मुशाबहतें
जो हो सब से ज़ियादा बुलंद-ओ-बाला अलग-थलग
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
उफ़ ये शबनम से छलकते हुए फूलों के अयाग़
इस चमन में हैं अभी दीदा-ए-पुर-नम कितने