aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती हैजीवन वो महँगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों सेलौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने मेंज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
जलती हुई मोम-बत्ती रख केएक तार पर से गुज़़रेंगे
लहलहाते हुए खेतों पे जवानी का समाँऔर दहक़ान के छप्पर में न बत्ती न धुआँ
भले दिनों की बात हैभली सी एक शक्ल थी
वो सड़कों पे फूलों की धारी सी बनतीइधर से उधर से हसीनों को चुनती
मोम-बत्ती की रौशनी में नज़रहाफ़िज़े के वरक़ उलटती थी
कभी हड्डियों की सुरंगों में बत्ती जला करयूँही घूमता है
अंगूर की तरह रंग बदल कर दो-आतिशा होनापिघली हुई मोम-बत्ती की रौशनी के आख़िरी वार
गए बरसों इक हासिल क्या!फ़क़त इक मोम-बत्ती तीन-सौ-पैंसठ दिनों में
रात और दिन के इस तसलसुल मेंउम्र बाँटे से भी नहीं बटती
कितने दिलकश बदनमोम-बत्ती की तरह पिघल गए
किसी के मरने परमोम-बत्ती नहीं जलानी चाहिए
बचा कर रखा अपना मोमतुम उस की बाती होतीं
पहले हम ज़िंदगी को टुकड़ों मेंतक़्सीम करते हैं
मोम-बत्ती के अध-जले टुकड़ेकुछ तराशे शिकस्ता नज़्मों के
जलती धूप और बत्ती सुर्ख़एक हाथ में जग अटकाए
ज़र्द बत्ती उदास परवानाअल-ग़रज़ इक न इक ग़म-ए-गुल-ओ-ख़ार
जश्न की रात हैसौग़ात तो बटती होगी
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