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नज़्म
यूँही बस यूँही 'ज़ेनू' ने यकायक ख़ुद-कुशी कर ली
अजब हिस्स-ए-ज़राफ़त के थे मालिक ये रवाक़ी भी
जौन एलिया
नज़्म
किसी को इस तग़य्युर का न हिस होगा न ग़म होगा
हुए जिस साज़ से पैदा उसी के ज़ेर-ओ-बम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
पेश-रौ शाही थी फिर हिज़-हाईनेस फिर अहल-ए-जाह
बअ'द इस के शैख़ साहब उन के पीछे ख़ाकसार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
मगर हम हैं कि असलन हिस नहीं हम को कोई इस की
हमारे पा-ए-हिम्मत इन मराहिल में हैं बे-क़ाबू
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
बशर नवाज़
नज़्म
खिलखिलाते आईकोन के साथ उस का मैसेज नुमूदार हुआ
अरे लड़की तुम में ज़रा हिस्स-ए-मिज़ाह नहीं है
ज़ेहरा अलवी
नज़्म
पत्थरों की इसी अंजुमन का मुग़न्नी हूँ मैं
और बेदर्द बे-हिस सितमगार पत्थर सुनेंगे कभी
वहीद अख़्तर
नज़्म
लेकिन ऐ दोस्त! मिरे दर्द के बे-हिस नक़्क़ाद
मिरे आँसू मिरी आहें भी तो कुछ कहती हैं