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नज़्म
चीरा-दस्ती का मिटा देती हैं सब जाह-ओ-जलाल
हैफ़-सद-हैफ़ कि हाइल है ग़रीबों का ख़याल
शकील बदायूनी
नज़्म
मिला न हैफ़! ग़ुल-आराई का मिज़ाज कभी
मिरे ख़ुलूस के ''ख़िर्मन के ख़ोशा-चीनों को''
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
दोस्त मिला था तुझ को कैसा हैफ़ इतना भी याद नहीं
जान फ़िदा करता था जिस पर दिल में उस की याद नहीं