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नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
वक़्त से पहले बुला लेते हैं पीरी को उलूम
उम्र से आगे निकल जाते हैं चेहरे बिल-उमूम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तुम को लोगों ने बताया मर गया है एक शख़्स
और यूँ मरते हैं नादाँ हूँ कि अर्बाब-ए-उक़ूल
मयकश अकबराबादी
नज़्म
इस के दामन में हैं पिन्हाँ हर ज़माने के उलूम
इस के आँगन में हैं रक़्साँ चाँद सूरज और नुजूम
अता आबिदी
नज़्म
बढ़ रहा है सूरत-ए-सैलाब लोगों का हुजूम
हर दुकाँ पर गाहकों का शोर-ओ-ग़ुल है बिल-उमूम