aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

दिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

नून मीम राशिद

दिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

नून मीम राशिद

MORE BYनून मीम राशिद

    नग़्मा-दर-जाँ रक़्स बरपा ख़ंदा-बर-लब

    दिल तमन्नाओं के बे-पायाँ अलाव के क़रीब

    दिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

    रेग के दिल-शाद शहरी रेग तू

    और रेग ही तेरी तलब

    रेग की निकहत तिरे पैकर में तेरी जाँ में है

    रेग सुब्ह-ए-ईद के मानिंद ज़रताब-ओ-जलील

    रेग सदियों का जमाल

    जश्न-ए-आदम पर बिछड़ कर मिलने वालों का विसाल

    शौक़ के लम्हात के मानिंद आज़ाद-ओ-अज़ीम

    रेग नग़्मा-ज़न

    कि ज़र्रे रेग-ज़ारों की वो पाज़ेब-ए-क़दीम

    जिस पे पड़ सकता नहीं दस्त-ए-लईम

    रेग-ए-सहरा ज़र-गरी की एक की लहरों से दूर

    चश्मा-ए-मक्र-ओ-रिया शहरों से दूर

    रेग शब-बेदार है सुनती है हर जाबिर की चाप

    रेग शब-बेदार है निगराँ है मानिंद-ए-नक़ीब

    देखती है साया-ए-आमिर की चाप

    रेग हर अय्यार ग़ारत-गर की मौत

    रेग इस्तिब्दाद के तुग़्याँ के शोर-ओ-शर की मौत

    रेग जब उठती है उड़ जाती है हर फ़ातेह की नींद

    रेग के नेज़ों से ज़ख़्मी सब शहंशाहों के ख़्वाब

    रेग सहरा की रेग

    मुझ को अपने जागते ज़र्रों के ख़्वाबों की

    नई ताबीर दे

    रेग के ज़र्रों उभरती सुब्ह तुम

    आओ सहरा की हदों तक गया रोज़-ए-तरब

    दिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

    चूम रेग

    है ख़यालों के परी-ज़ादों से भी मासूम रेग

    रेग-ए-रक़्साँ माह-ओ-साल नूर तक रक़्साँ रहे

    उस का अबरेशम मुलाएम नर्म-ख़ू ख़ंदाँ रहे

    दिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

    ये तमन्नाओं का बे-पायाँ अलाव

    राह गुम कर दूँ की मशअ'ल इस के लब पर आओ आओ

    तेरे माज़ी के ख़ज़फ़ रेज़ों से जागी है ये आग

    आग की क़ुर्मुज़ ज़बाँ पर इम्बिसात-ए-नौ के राग

    दिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

    सरगिरानी की शब-ए-रफ़्ता से जाग

    कुछ शरर आग़ोश सरसर में हैं गुम

    और कुछ ज़ीना ज़ीना शो'लों के मीनार पर चढ़ते हुए

    और कुछ तह में अलाव की अभी

    मुज़्तरिब लेकिन मुज़बज़ब तिफ़्ल-ए-कम-सिन की तरह

    आग ज़ीना आग रंगों का ख़ज़ीना

    आग उन लज़्ज़ात का सर-चश्मा है

    जिस से लेता है ग़िज़ा उश्शाक़ के दिल का तपाक

    चोब-ए-ख़ुश्क अंगूर उस की मय है आग

    सरसराती है रगों में ईद के दिन की तरह

    आग काहिन याद से उतरी हुई सदियों की ये अफ़्साना-ख़्वाँ

    आने वाले क़रनहा की दास्तानें लब पे हैं

    दिल मिरा सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल सुन कर जवाँ

    आग आज़ादी का दिल-शादी का नाम

    आग पैदाइश का अफ़्ज़ाइश का नाम

    आग के फूलों में नस्रीं यासमन सुम्बुल शफ़ीक़-ओ-नस्तरन

    आग आराइश का ज़ेबाइश का नाम

    आग वो तक़्दीस धुल जाते हैं जिस से सब गुनाह

    आग इंसानों की पहली साँस के मानिंद इक ऐसा करम

    उम्र का इक तूल भी जिस का नहीं काफ़ी जवाब

    ये तमन्नाओं का बे-पायाँ अलाव गर हो

    इस लक़-ओ-दक़ में निकल आएँ कहीं से भेड़िये

    इस अलाव को सदा रौशन रखो

    रेग-ए-सहरा को बशारत हो कि ज़िंदा है अलाव

    भेड़ियों की चाप तक आती नहीं

    आग से सहरा का रिश्ता है क़दीम

    आग से सहरा के टेढ़े रेंगने वाले

    गिरह-आलूद ज़ोलीदा दरख़्त

    जागते हैं नग़्मा-दर-जाँ रक़्स बरपा ख़ंदा-बर-लब

    और मना लेते हैं तन्हाई में जश्न-ए-माहताब

    उन की शाख़ें ग़ैर-मरई तब्ल की आवाज़ पर देती हैं ताल

    बीख़-ओ-बुन से आने लगती है ख़ुदावंदी जलाजिल की सदा

    आग से सहरा का रिश्ता है क़दीम

    रहरवों सहरा-नवर्दों के लिए है रहनुमा

    कारवानों का सहारा भी है आग

    और सहराओं की तन्हाई को कम करती है आग

    आग के चारों तरफ़ पश्मीना-ओ-दस्तार में लिपटे हुए

    अफ़्साना-गो

    जैसे गिर्द-ए-चश्म मिज़्गाँ का हुजूम

    उन के हैरत-नाक दिलकश तजरबों से

    जब दमक उठती है रेत

    ज़र्रा ज़र्रा बजने लगता है मिसाल-ए-साज़-ए-जाँ

    गोश-बर-आवाज़ रहते हैं दरख़्त

    और हँस देते हैं अपनी आरिफ़ाना बे-नियाज़ी से कभी

    ये तमन्नाओं का बे-पायाँ अलाव गर हो

    रेग अपनी ख़ल्वत-ए-बे-नूर-ओ-ख़ुद-बीं में रहे

    अपनी यकताई की तहसीं में रहे

    इस अलाव को सदा रौशन रखो

    ये तमन्नाओं का बे-पायाँ अलाव गर हो

    एशिया अफ़्रीक़ा पहनाई का नाम

    बे-कार पहनाई का नाम

    यूरोप और अमरीका दाराई का नाम

    तकरार-ए-दाराई का नाम

    मेरा दिल सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल

    जाग उठा है मश्रिक-ओ-मग़रिब की ऐसी यक-दिली

    के कारवानों का नया रूया लिए

    यक-दिली ऐसी कि होगी फ़हम-ए-इंसाँ से वरा

    यक-दिली ऐसी कि हम सब कह उठें

    इस क़दर उजलत कर

    इज़्दिहाम-ए-गुल बन

    कह उठें हम

    तू ग़म-ए-कुल तो थी

    अब लज़्ज़त-ए-कुल भी बन

    रोज़-ए-आसाइश की बेदर्दी बन

    यक-दिली बन ऐसा सन्नाटा बन

    जिस में ताबिस्ताँ की दो-पहरों की

    बे-हासिल कसालत के सिवा कुछ भी हो

    इस जफ़ा-गर यक-दिली के कारवाँ यूँ आएँगे

    दस्त-ए-जादू-गर से जैसे फूट निकले हों तिलिस्म

    इश्क़-ए-हासिल-ख़ेज़ से या ज़ोर-ए-पैदाई से जैसे ना-गहाँ

    खुल गए हों मश्रिक-ओ-मग़रिब के जिस्म

    जिस्म सदियों के अक़ीम

    कारवाँ फ़र्ख़न्दा-पय और उन का बार

    कीसा कीसा तख़्त-ए-जम और ताज-ए-कै

    कूज़ा कूज़ा फ़र्द की सतवत की मय

    जामा जामा रोज़-ओ-शब मेहनत का ख़य

    नग़्मा नग़्मा हुर्रियत की गर्म लय

    सालिको फ़िरोज़-बख़तो आने वाले क़ाफ़िलो

    शहर से लौटोगे तुम तो पाओगे

    रेत के सरहद पे जो रूह-ए-अबद ख़्वाबीदा थी

    जाग उठी है शिकवा-हा-ए-नै से वो

    रेत की तह में जो शर्मीली सहर रोईदा थी

    जाग उठी है हुर्रियत की लै से वो

    इतनी दोशीज़ा थी इतनी मर्द-ए-ना-दीदा थी सुब्ह

    पूछ सकते थे उस की उम्र हम

    दर्द से हँसती थी

    ज़र्रों की रानाई पे भी हँसती थी

    एक महजूबाना बे-ख़बरी में हँस देती थी सुब्ह

    अब मनाती है वो सहरा का जलाल

    जैसे इज़्ज़-ओ-जल के पाँव की यही मेहराब हो

    ज़ेर-ए-मेहराब गई हो उस को बेदारी की रात

    ख़ुद जनाब-ए-इज़्ज़-ओ-जल से जैसे उमीद-ए-ज़फ़ाफ़

    सारे ना-कर्दा गुनाह इस के मुआफ़

    सुब्ह-ए-सहरा शादबाद

    उरूस-ए-इज़्ज़-ओ-जल फ़र्ख़न्दा रो ताबिंदा खो

    तू इक ऐसे हुजरा-ए-शब से निकल कर आई है

    दस्त-ए-क़ातिल ने बहाया था जहाँ हर सेज पर

    सैंकड़ों तारों का रख़्शंदा लहू फूलों के पास

    सुब्ह-ए-सहरा सर मिरे ज़ानू पे रख कर दास्ताँ

    उन तमन्ना के शहीदों की कह

    उन की नीमा-रस उमंगों आरज़ूओं की कह

    जिन से मिलने का कोई इम्काँ नहीं

    शहद तेरा जिन को नश्श-ए-जाँ नहीं

    आज भी कुछ दूर इस सहरा के पार

    देव की दीवार के नीचे नसीम

    रोज़-ओ-शब चलती है मुबहम ख़ौफ़ से सहमी हुई

    जिस तरह शहरों की राहों पर यतीम

    नग़्मा-बर-लब ताकि उन की जाँ का सन्नाटा हो दूर

    आज भी इस रेग के ज़र्रों में हैं

    ऐसे ज़र्रे आप ही अपने ग़नीम

    आज भी इस आग के शो'लों में हैं

    वो शरर जो उस की तह में पर-बुरीदा रह गए

    मिस्ल-ए-हर्फ़ ना-शुनीदा रह गए

    सुब्ह-ए-सहरा उरूस-ए-इज़्ज़-ओ-जल

    कि उन की दास्ताँ दोहराएँ हम

    उन की इज़्ज़त उन की अज़्मत गाएँ हम

    सुब्ह रेत और आग हम सब का जलाल

    यक-दिली के कारवाँ उन का जमाल

    आओ

    इस तहलील के हल्क़े में हम मिल जाएँ

    आओ

    शाद-बाग़ अपनी तमन्नाओं का बे-पायाँ अलाव

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    नून मीम दनिश

    नून मीम दनिश

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए