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नज़्म
निज़ाम-ए-ज़िंदगानी पर बड़ा एहसान है इस का
बहुत आसानियाँ इस में मिलें तब्लीग़-ए-फ़ितरत को
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
तिरे सोफ़े हैं अफ़रंगी तिरे क़ालीं हैं ईरानी
लहू मुझ को रुलाती है जवानों की तन-आसानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
निशान-ए-बर्ग-ए-गुल तक भी न छोड़ उस बाग़ में गुलचीं
तिरी क़िस्मत से रज़्म-आराइयाँ हैं बाग़बानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस की मेहनत से फबकता है तन-आसानी का बाग़
जिस की ज़ुल्मत की हथेली पर तमद्दुन का चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
एक गूँजता हुआ आसमान नज़्म के लिए काफ़ी होता है
लेकिन ये एक नाश्ता-दान में बा-आसानी समा सकती है
सरवत हुसैन
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ये फूलों की हसीं आबादियाँ काशाना थीं उस का
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दफ़्न कर देगा जो ख़ालिक़ को भी मख़्लूक़ समेत
और ये आबादियाँ बन जाएँगी फिर रेत ही रेत
अहमद फ़राज़
नज़्म
कहते हैं लड़के किया करते थे जो अटखेलियाँ
''याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराइयाँ''