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नज़्म
ज़बाँ पे दोस्ती का राग आस्तीन में छुरी
दिलों में बुग़्ज़ है भरा मगर लबों पे है हँसी
उरूज क़ादरी
नज़्म
नहीं मा'लूम था ये चीन है और दिल का काला है
हम अब समझे कि हम ने आस्तीं में साँप पाला है
चमन सीतापुरी
नज़्म
छुपा कर आस्तीं में बिजलियाँ रक्खी हैं गर्दूं ने
अनादिल बाग़ के ग़ाफ़िल न बैठें आशियानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न दस्त-ओ-नाख़ुन-ए-क़ातिल न आस्तीं पे निशाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कभी मैं ज़ौक़-ए-तकल्लुम में तूर पर पहुँचा
छुपाया नूर-ए-अज़ले ज़ेर-ए-आस्तीं मैं ने