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नज़्म
ये वो जमुना है जहाँ इक बानु-ए-पर्दा-नशीं
आगरा में महव-ए-आसाइश है जो ज़ेर-ए-ज़मीं
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
दिल ओ जाँ और आसाइश ये इक कौनी तमस्ख़ुर है
हुमुक़ की अबक़रिय्यत है सफ़ाहत का तफ़क्कुर है
जौन एलिया
नज़्म
ढूँडी है यूँही शौक़ ने आसाइश-ए-मंज़िल
रुख़्सार के ख़म में कभी काकुल की शिकन में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सफ़ा-ए-दिल को क्या आराइश-ए-रंग-ए-तअल्लुक़ से
कफ़-ए-आईना पर बाँधी है ओ नादाँ हिना तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल की तस्कीं भी है आसाइश-ए-हस्ती की दलील
ज़िंदगी सिर्फ़ ज़र-ओ-सीम का पैमाना नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
''शोर-ए-लैला को कि बाज़-आराइश-ए-सौदा कुनद
ख़ाक-ए-मजनूँ-रा ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-सहरा कुनद''
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो सारी उम्र ज़रूरत की चीज़ों के लिए भी तरसते हैं
गो ऐसे लोग भी हैं जिन को आसाइश ही आसाइश है