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नज़्म
थमे क्या दीदा-ए-गिर्यां वतन की नौहा-ख़्वानी में
इबादत चश्म-ए-शाइर की है हर दम बा-वज़ू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अस्ल जो इबारत हो पस नविश्त हो जाए
फ़स्ल-ए-गुल के आख़िर में फूल उन के खुलते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
हिकायत-ए-दिल हिकायत-ए-जाँ हिकायत-ए-ज़िन्दगी यही है
अगर सलीक़े से लिक्खी जाए इबारत-ए-ज़िन्दगी यही है
तारिक़ क़मर
नज़्म
भूल जाएँगे इबादत ख़ानक़ाहों में फ़क़ीर
हश्र-दर-आग़ोश हो जाएगी दुनिया की फ़ज़ा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अहल-ए-इस्लाम से लेना है इबादत का जलाल
और ईसाईयों से सब्र लगन और इस्तिक़्लाल