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नज़्म
असर कुछ ख़्वाब का ग़ुंचों में बाक़ी है तू ऐ बुलबुल
नवा-रा तल्ख़-तरमी ज़न चू ज़ौक़-ए-नग़्मा कम-याबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
घिरा हुआ है अब्र माहताब ढूँढता हूँ मैं
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
इस गुल-कदा-ए-पारीना में फिर आग भड़कने वाली है
फिर अब्र गरजने वाले हैं फिर बर्क़ कड़कने वाली है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रेगज़ारों में बगूलों के सिवा कुछ भी नहीं
साया-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ से मुझे क्या लेना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दरगुज़र के गुलशन में अब्र बन के रहते हैं
सब्र के समुंदर में कश्तियाँ चलाते हैं