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नज़्म
नशीली आँखें, रसीली चितवन, दराज़ पलकें, महीन अबरू
तमाम शोख़ी, तमाम बिजली, तमाम मस्ती, तमाम जादू
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
कुश्ता-ए-मग़रिब निगार-ए-शर्क़ के अबरू भी देख
साज़-ए-बे-रंगी के जूया सोज़-ए-रंग-ओ-बू भी देख
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
कि हम मेहराब-ए-अबरू में सितारे टाँकने वाले
दर-ए-लब बोसा-ए-इज़हार की दस्तक से अक्सर खोलने वाले
सलीम कौसर
नज़्म
इसी के जुम्बिश-ए-अबरू पे है इंग्लैण्ड का ग़र्रा
इसी के हैं सब आवुर्दे फ़्रांसीसी ओ एल्बानी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
लब पे ख़ुश्की रुख़ पे ज़र्दी आँख शर्माई हुई
चश्म ओ अबरू में ख़ुदी की आग कजलाई हुई