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नज़्म
देख आए हम भी दो दिन रह के देहली की बहार
हुक्म-ए-हाकिम से हुआ था इजतिमा-ए-इंतिशार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
कहीं है इज्तिमा तब्लीग़ियों का एक कोठी में
तो है शीओं की मज्लिस और रक़ाइम दूसरे घर में
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
मुरक़्क़ा' है हसीं तहरीक-ए-अफ़्सानी के ख़ाकों का
मुकम्मल इज्तिमा-ए-गौहर-ए-अय्याम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
उस ने इंग्लिश में लिखी उर्दू की तारीख़-ए-अदब
फिर किया उर्दू में उस को छापने का एहतिमाम