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नज़्म
फिराया फ़िक्र-ए-अज्ज़ा ने उसे मैदान-ए-इम्काँ में
छुपेगी क्या कोई शय बारगाह-ए-हक़ के महरम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
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حسن بے پاياں ہے ، درد لادوا رکھتا ہوں ميں
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न जाने कौन से अज्ज़ा हैं इस उफ़्ताद में शामिल
ये निर्मल जल का चश्मा ये दिल-ए-बे-क़ैद-ओ-बे-पायाँ
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अवामुन्नास से पूछो भला अल-कुह्ल में क्या है
ये तअन-ओ-तंज़ की हर्ज़ा-सराई हो नहीं सकती
जौन एलिया
नज़्म
गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से
जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गोशा-ए-दिल में छुपाए इक जहान-ए-इज़तिराब
शब सुकूत-अफ़्ज़ा हवा आसूदा दरिया नर्म सैर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तवंगर हिर्ज़ा-कारों को किया दरयूज़ा-गर मुझ को
मगर जब जब किसी के सामने दामन पसारा है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे