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नज़्म
दोस्त रखती थी हमेशा तिरे हर दोस्त को मैं
हो गए अपने अहिब्बा से सिवा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
गिरफ़्तार-ए-क़लक़ होंगे मुलाज़िम भी मुसाहिब भी
सर-ए-बालीं खड़े होंगे अहिब्बा भी अक़ारिब भी
बिसमिल देहलवी
नज़्म
मैं सब सुनता मगर ये दिल ही दिल में सोचता रहता
मिरे अहबाब क्या जानें कि मुझ पर क्या गुज़रती है