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नज़्म
जब भी साक़ी ने सुराही को दिया इज़्न-ए-ख़िराम
बज़्म की बज़्म पुकारेगी कि आग़ाज़ में तू
अहमद फ़राज़
नज़्म
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर
इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
जौन एलिया
नज़्म
तख़्त-ए-फ़ग़्फ़ूर भी उन का था सरीर-ए-कए भी
यूँ ही बातें हैं कि तुम में वो हमियत है भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी
इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़ा भी तोड़ दूँ
उन को पा सकता हूँ मैं ये आसरा भी तोड़ दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के