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नज़्म
फिरता है बोसे देता है हर इक को ख़्वाह-मख़ाह
हरगिज़ किसी के दिल को नहीं होती उस की चाह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सब की ख़ुशी यही है तो सहरा को हो रवाँ
लेकिन मैं अपने मुँह से न हरगिज़ कहूँगी हाँ
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
किताबें ऐसी कि आम इंसाँ को इन के पढ़ने का हक़ है लेकिन
इन्हें समझने का हक़ न हरगिज़ दिया गया है
तारिक़ क़मर
नज़्म
मेरा फ़न मेरी उमीदें आज से तुम को अर्पन हैं
आज से मेरे गीत तुम्हारे दुख और सुख का दर्पन हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'