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नज़्म
सरवत हुसैन
नज़्म
दिक़ तुझ से किताबें हैं बहुत करम किताबी
तू दुश्मन-ए-दुज़्दीदा है ख़ाकी हो कि आबी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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दिक़ तुझ से किताबें हैं बहुत करम किताबी
तू दुश्मन-ए-दुज़्दीदा है ख़ाकी हो कि आबी