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नज़्म
कभी कभी तो दरख़्तों की तादाद इतनी बढ़ जाती है
कि मुझे गुज़िश्ता दिन के आदाद ओ शुमार पर
सईदुद्दीन
नज़्म
एक भीगी हुई मुस्कुराहट में कहने का तुझ को सलीक़ा था
आदाद ओ अल्फ़ाज़ की भीड़ में
अली मोहम्मद फ़र्शी
नज़्म
भीगते फैलते लफ़्ज़ आदाद जब भी समुंदर बनाते
तिरे नाम की नाव मुझ को किनारे लगाती
अली मोहम्मद फ़र्शी
नज़्म
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
है शायद मुझ को सारी उम्र उस के सेहर में रहना
मगर मेरे ग़रीब अज्दाद ने भी कुछ किया होगा
जौन एलिया
नज़्म
मौत और ज़ीस्त की रोज़ाना सफ़-आराई में
हम पे क्या गुज़रेगी अज्दाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तर्बियत से तेरी में अंजुम का हम-क़िस्मत हुआ
घर मिरे अज्दाद का सरमाया-ए-इज़्ज़त हुआ