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नज़्म
जो तू समझे तो आज़ादी है पोशीदा मोहब्बत में
ग़ुलामी है असीर-ए-इम्तियाज़-ए-मा-ओ-तू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
واں بھي انساں اپني اصليت سے بيگانے ہيں کيا؟
امتياز ملت و آئيں کے ديوانے ہيں کيا؟
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नज़ीर बनारसी
नज़्म
हाँ बता दे हम को भी ऐ रूह-ए-अर्बाब-ए-नियाज़
किस तरह मिटता है आख़िर रंग-ओ-ख़ूँ का इम्तियाज़
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
تارے میں وہ، قمر میں وہ، جلوہ گہِ سحَر میں وہ
چشمِ نظارہ میں نہ تُو سُرمۂ امتیاز دے
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शाइ'र-ओ-सन्नाअ' हो फ़िक्र-ओ-ख़लिश से बे-नियाज़
ख़्वाजा-ओ-मज़दूर में बाक़ी न हो कुछ इम्तियाज़
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
जोश-ए-इस्तिग़्ना तिरा तेरे लिए वजह-ए-नशात
शान-ए-ख़ुद्दारी तिरी आईना-दार-ए-एहतियात
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
आई न उफ़ ज़बाँ पे सितम पर हुए सितम
क्या इम्तिहाँ के वास्ते ठहरे हैं सिर्फ़ हम
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
दिखलाएँ किस मज़े से अब के बहार होली
खेले हैं सब जम्अ' हो क्या गुल-एज़ार होली