aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "اپائے"
बोला बीबी इस बिल्ली का कुछ तो करें उपाएदूध न छोड़े गोश्त न छोड़े हैं बुढ्ढा लाचार
रौशनी चिंता की तो ज़ेहन से अब बुझ नहीं सकतीख़ुद-कशी एक अंधेरा है, उपाए तो नहीं
ऐसे वक़्त में दिल को हमेशा सूझा एक उपाएकाश कोई बे-ख़्वाब दरीचा चुपके से खुल जाए
मिस्ल-ए-बू क़ैद है ग़ुंचे में परेशाँ हो जारख़्त-बर-दोश हवा-ए-चमनिस्ताँ हो जा
उस से तुम नहीं डरते!हर्फ़ और मअनी के रिश्ता-हा-ए-आहन से आदमी है वाबस्ता
हाए किस दर्जा वही बज़्म में तन्हा होगाकभी सन्नाटों से वहशत जो हुई होगी उसे
चाहता हूँ कि भूल जाऊँ तुम्हेंऔर ये सब दरीचा-हा-ए-ख़याल
निगार-हा-ए-फ़ित्नागरकोई इधर कोई उधर
मुसलमाँ को मुसलमाँ कर दिया तूफ़ान-ए-मग़रिब नेतलातुम-हा-ए-दरिया ही से है गौहर की सैराबी
सितम तो ये है कि दोनों के मर्ग़-ज़ारों सेहवा-ए-फ़ित्ना ओ बू-ए-फ़साद आती है
अदा-ए-इज्ज़-ओ-करम से उठा रही हो तुमसुहाग-रात जो ढोलक पे गाए जाते हैं
आनी-ओ-फ़ानी तमाम मोजज़ा-हा-ए-हुनरकार-ए-जहाँ बे-सबात कार-ए-जहाँ बे-सबात
हाए उस जिस्म के कम्बख़्त दिल-आवेज़ ख़ुतूतआप ही कहिए कहीं ऐसे भी अफ़्सूँ होंगे
आज इस शहर कल उस शहर का रस्ता लेनाहाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है
बे-कस बरहनगी को कफ़न तक नहीं नसीबवो व'अदा-हा-ए-अतलस-ओ-किम-ख़्वाब क्या हुए
अाया-ए-कायनात का म'अनी-ए-देर-याब तू!निकले तिरी तलाश में क़ाफ़िला-हा-ए-रंग-ओ-बू!
दरख़्त उगाएदरख़्त पे
बाद-हा-ए-तुंद नेमेरे लिए बस एक अंदाज़ा ही छोड़ा है!
जला के जिस की मोहब्बत ने दफ़्तर-ए-मन-ओ-तूहवा-ए-ऐश में पाला किया जवाँ मुझ को
और चली आई है बस यूँही मिरा हाथ पकड़ करघर की हर चीज़ सँभाले हुए अपनाए हुए तू
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