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नज़्म
तमाशा इक अजब सा एक दिन यूँ राह में देखा
किसी को देखते हैं लोग इक मजमा इकट्ठा है
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
हज़ारों मील की दूरी पे तुम से आ गया और अब
दिनों सालों महीनों को इकट्ठा कर के गुम-गश्ता
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
थोड़ा थोड़ा ये जो सुहागन रंग इकट्ठा दिल में हुआ है
जाने कितने भेद निचोड़े नींद गँवाई प्यास चुराई
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
दिल में इक शोला भड़क उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
मेरा पैमाना छलक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ