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मैं एक आँसू इकट्ठा कर रहा हूँ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

मैं एक आँसू इकट्ठा कर रहा हूँ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

MORE BYसय्यद काशिफ़ रज़ा

    मेरा दुख कुओं कि तराईयों में उतर गया है

    मैं उसे खींच कर निकाल लूँगा

    मेरी आँखों में इक आबशार की धुँद फैल गई है

    मैं उसे एक आँसू में जम्अ कर लूँगा

    हम ने एक ही घूँट से प्यास बुझाई

    जो तुम ने हल्क़ के अंदर से चखा

    और मेरे होंटों ने

    तुम्हारे हल्क़ के बाहर से

    तुम हमारी तरफ़ रुख़ कर के किताब देखते

    और तख़्त-ए-सियाह की तरफ़ रुख़ कर के

    लिखते

    मैं भी एक हिसाबी उलझन सुलझा रहा था

    तुम्हारे ज़ानू

    तुम्हारे कूल्हों से ज़ियादा फ़र्बा क्यूँ हैं

    तुम्हें मिली हुई नेमतों के तशक्कुर में

    झुकी रहने वाली ब्रेज़ियर

    मिरे इस्तिक़बाल के लिए खड़ी हो गई थी

    मुझे तुम्हारे कूल्हों की मासूमियत मार डालेगी

    गर्दन से नीचे

    तुम्हारी रीढ़ की हड्डी पर साँप लिपटा हुआ था

    कहाँ चला गया

    तुम्हारी आँखों में मेरे लिए

    एक ख़ैर-मक़दमी रास्ता बिछा था

    जिस पर मैं इस जुस्तुजू में चलता जाता

    तुम्हारी आँखें अस्ल में कहाँ वाक़े हैं

    तुम्हारी पुश्त पर लिपटा साँप

    मेरे सीने पर रेंग रहा है

    काश मैं उसे

    अपनी टाँगों के दरमियाँ घोंट सकता

    दाँतों ने मेरे होंट बर्बाद कर दिए

    मैं तुम्हारे रुख़्सारों पर

    इन का तुख़्म बौना चाहता था

    ज़िंदगी मैं ने भीक में वसूल कि

    अब वो मेरे गुल्लक में गल रही है

    आज मैं उसे तोड़ दूँगा

    मेरा दुख कुओं की तराईयों में उतर गया है

    आज मैं उसे एक आँसू में इकट्ठा कर दूँगा

    तुम उसे

    अपनी ज़बान की नोक पर उतार कर थूक देना

    ज़मीन पर

    या मेरे मुँह पर

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