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नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
ज़र्रात का बोसा लेने को सौ बार झुका आकाश यहाँ
ख़ुद आँख से हम ने देखी है बातिल की शिकस्त-ए-फ़ाश यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़म के बादल ख़ातिर-ए-नाज़ुक पे हैं छाए हुए
आरिज़-ए-रंगीं हैं या दो फूल मुरझाए हुए