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नज़्म
गुलाबी हो कहीं ऐसा न हो तुम ज़र्द हो जाओ
मोहब्बत की हरारत खो के बिल्कुल सर्द हो जाओ
रहमान फ़ारिस
नज़्म
खेल-खिलौनों का हर-सू है इक रंगीं गुलज़ार खिला
वो इक बालक जिस को घर से इक दिरहम भी नहीं मिला
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
दाना-पानी कर दिया जाएगा बिल्कुल तुम पे बंद
तुम को भूखों मार के क़ब्ज़े में लाया जाएगा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
जो पस्ती में थे अब वो जल्वा-गर हैं बाम-ए-रिफ़अत पर
जो बालक बे-निशाँ थे आज है इन का अलम बरपा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
सच है अब हम अपनी अपनी दुनियाओं में गुम रहते हैं
ये भी सच हम दोनों बिल्कुल तन्हा जीना सीख गए हैं
अंबरीन हसीब अंबर
नज़्म
मेरे लिए तुम्हारा प्यार बिल्कुल वैसा था
जैसे चाय के आख़िरी घूँट में दूसरे कप की तलब
गीताञ्जलि राय
नज़्म
दफ़ बजते हैं सब हँसते हैं और धूम है बिल्कुल
होली की ख़ुशी में तो न कर हम से तग़ाफ़ुल