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नज़्म
इल्म से बढ़ती है अक़्ल और अक़्ल है वो बद-दिमाग़
जो बुझा देती है सीने में मोहब्बत का चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़लिश-ए-दिल से उसे दस्त-ओ-गरेबाँ न करूँ
उस के जज़्बात को मैं शो'ला-ब-दामाँ न करूँ
नून मीम राशिद
नज़्म
ख़ुदा सोया हुआ है अहरमन महशर-ब-दामाँ है
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब मैं समझा कि है क्या राज़-ए-ब-दामान-ए-हिजाब
वाक़ई तुम को नदामत है जो ख़ामोश हो तुम
शकील बदायूनी
नज़्म
दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ जब राब्ते का पुल नहीं टूटा
तो मैं किस तरह पहुँचा बद-दुआएँ देने वालों में