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नज़्म
तुम्हारी मीआ'द-ए-आज़माइश का फ़ैसला मो'तबर नहीं है
तुम्हारा सय्याद बे-बसर है ये दौर तो बे-बसर नहीं है
ज़हीर काश्मीरी
नज़्म
मिरी आँखों में तेरी रौशनी के ख़द्द-ओ-ख़ाल अब तक नहीं उभरे
मिरी आँखें अभी तक बे-बसर हैं
सलमान बासित
नज़्म
कोर-बसर ख़्वाबों के सूखे लबों तक पहुँचता है
और तिश्ना-काम ख़्वाबों का दम टूटने से ज़रा पहले
नीलम मालिक
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की