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नज़्म
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
चाय की दावत पे घर बुलवा के उन को बार बार
उन से कहता हूँ कि लिक्खो कुछ न कुछ हम पर भी यार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे
दिल पे गहरी थकन छा रही है
मीराजी
नज़्म
बल्कि हर इक रंग के शजरे तक से वाक़िफ़ है
उस को 'इल्म है किन ख़्वाबों से आँखें नीली पड़ जाती हैं
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
फ़लक पे वज्द में लाती है जो फ़रिश्तों को
वो शाएरी भी बुलूग़-ए-मिज़ाज-ए-तिफ़्ली है