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नज़्म
पहले ज़माना और था मय और थी दौर और था
वो बोलियाँ ही और थीं वो टोलियाँ ही और थीं, वो होलियाँ ही और थीं
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
उफ़ वो मेले चौकियों के उफ़ वो मीठी बोलियाँ
याद हैं अब तक मुझे वो सर-फिरों की टोलियाँ
अर्श मलसियानी
नज़्म
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
अहमद हमेश
नज़्म
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयाम-ए-ज़िंदगी लाया
ख़बर देती थीं जिन को बिजलियाँ वो बे-ख़बर निकले