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नज़्म
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तू ने दुनिया की निगाहों से जो बच कर लिक्खे
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
अकेले मैं तुम्हारी याद से बच कर कहाँ जाऊँ?
शौकत परदेसी
नज़्म
शौकत परदेसी
नज़्म
ज़र-परस्तों से हैं बद-दिल मिरी दुनिया के ग़रीब
हैं गिरफ़्तार-ए-सलासिल मिरी दुनिया के ग़रीब