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नज़्म
कहीं हर्फ़-ए-तमन्ना की तरह दिल में तराज़ू हैं
सुनो... इन नील-चश्मों सख़्त-जानों बे-ज़बानों पर
अब्बास ताबिश
नज़्म
उस के नाज़ुक क़ल्ब में मिलता है मज़लूमों का दर्द
बे-कसों का है वो हामी बे-ज़बानों की ज़बाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
विदा-ए-रोज़-ए-रौशन है गजर शाम-ए-ग़रीबाँ का
चरा-गाहों से पलटे क़ाफ़िले वो बे-ज़बानों के