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नज़्म
न ढूँड उस चीज़ को तहज़ीब-ए-हाज़िर की तजल्ली में
कि पाया मैं ने इस्तिग़्ना में मेराज-ए-मुसलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शब्नमिस्तान-ए-तजल्ली का फ़ुसूँ क्या कहिए
चाँद ने फेंक दिया रख़्त-ए-सफ़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिल के हर क़तरे में तूफ़ान-ए-तजल्ली भर दे
बत्न-ए-हर-ज़र्रा से इक महर-ए-मुबीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ज़रा जो दम भर को आँख झपकी, ये देखता हूँ नई तजल्ली
तिलिस्म सूरत मिटा रहे हैं, जमाल मअनी बना रहे हैं