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नज़्म
तदब्बुर की फ़ुसूँ-कारी से मोहकम हो नहीं सकता
जहाँ में जिस तमद्दुन की बिना सरमाया-दारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
کبھي اے نوجواں مسلم! تدبر بھي کيا تو نے
وہ کيا گردوں تھا تو جس کا ہے اک ٹوٹا ہوا تارا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दुनिया-ए-तदब्बुर में थी यकता-ए-ज़माना
हाथ उस के थे और उन में हुकूमत की इनाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
रिफ़अत सरोश
नज़्म
सिनान ओ गुर्ज़ ओ शमशीर ओ तबर ख़ंजर नहीं लाज़िम
बस इक एहसास लाज़िम है कि हम बुअदैन हैं दोनों
जौन एलिया
नज़्म
बाग़्बान-ए-चारा-फ़र्मा से ये कहती है बहार
ज़ख़्म-ए-गुल के वास्ते तदबीर-ए-मरहम कब तलक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर आह है ख़ुद तासीर यहाँ हर ख़्वाब है ख़ुद ताबीर यहाँ
तदबीर के पा-ए-संगीं पर झुक जाती है तक़दीर यहाँ