आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "جائز"
नज़्म के संबंधित परिणाम "جائز"
नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मज़हब-ए-इश्क़ में जाएज़ है यक़ीनन जाएज़
चूम लूँ मैं लब-ए-लालीं भी अगर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गिला करना तो जाएज़ ही नहीं है फ़र्ज़ है लेकिन
ज़बाँ पर शिकवा-ए-बेजा न मैं लाऊँ न वो लाएँ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर