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नज़्म
मुज़्तरिब दिल में मुनव्वर हैं मसर्रत के चराग़
जानी-पहचानी सी ख़ुश्बू में है मसहूर-ए-दिमाग़
ज़हीर सिद्दीक़ी
नज़्म
चेहरे पर जानी-पहचानी बे-मक़्सद सी कुछ तहरीरें
थके हुए पैरों में भागते रस्तों की साकित ज़ंजीरें
सलीम कौसर
नज़्म
आवाज़ें सी कुछ आती हैं, ''गुज़रे थे इक बार यहीं से''
हैरत बन कर देख रही है, हर जानी-पहचानी सूरत