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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
वो बिजली है जला सकती है सारी बज़्म-ए-इम्काँ को
अभी मेरे ही दिल तक हैं शरर-सामानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अस्बाब-ए-ज़ाहिरी में न इन पर करो नज़र
क्या जाने क्या है पर्दा-ए-क़ुदरत में जल्वा-गर
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
वतन से रुख़्सत-ए-'सिद्धार्थ' 'राम' का बन-बास
वफ़ा के ब'अद भी 'सीता' की वो जिला-वतनी