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नज़्म
ये अक़ीदा हिंदुओं का है निहायत ही क़दीम
जब कभी मज़हब की हालत होती है ज़ार-ओ-सक़ीम
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
प्रेम जगत के रहने वालो प्रेम से रिश्ता जोड़ो
हृदय है प्रभू का डेरा उसे कभी न तोड़ो
मोहम्मद हाज़िम हस्सान
नज़्म
अपने परवानों को फिर ज़ौक़-ए-ख़ुद-अफ़रोज़ी दे
बर्क़-ए-देरीना को फ़रमान-ए-जिगर-सोज़ी दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं अपने आप में हारा हूँ और ख़्वाराना हारा हूँ
जिगर-चाकाना हारा हूँ दिल-अफ़गाराना हारा हूँ
जौन एलिया
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो चश्म-ए-पाक हैं क्यूँ ज़ीनत-ए-बर-गुस्तवाँ देखे
नज़र आती है जिस को मर्द-ए-ग़ाज़ी की जिगर-ताबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक रंगीन ओ हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी
जन्नत-ए-शौक़ थी बेगाना-ए-आफ़ात-ए-सुमूम