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नज़्म
क्या उन को ख़बर थी सीनों से जो ख़ून चुराया करते थे
इक रोज़ इसी बे-रंगी से झलकेंगी हज़ारों तस्वीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो माँ कि झिड़कियां भी जिस की फूल बरसाएँ
वो माँ हम उस से जो दम भर को दुश्मनी कर लें
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
पापड़ जैसी हुईं हड्डियाँ जलने लगे हैं दाँत
जगह जगह झुर्रियों से भर गई सारे तन की खाल
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं
पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उस आबादी में और उस रेल की पटरी में जो भी फ़ासला था
उस को ख़ुद-रौ झाड़ियों ने ढाँप रक्खा था
इशरत आफ़रीं
नज़्म
मुस्लिमों के सर झुकें हैं सज्दा-ए-अल्लाह में
क्या उख़ुव्वत का सबक़ है क्या कमाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
हल्की हल्की झलकियाँ रुख़्सार पर यूँ नूर की
जैसे गुल पर सुब्ह-ए-काज़िब की सुहानी चाँदनी