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नज़्म
इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़्लूक़
क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आख़िर क्यूँ दुनिया का मैं ने सारा ज़हर पिया है
सारी उम्र न जाने अपने बदन में किसे जिया है