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नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अजब नहीं मिरे लफ़्ज़ मुझ को मुआ'फ़ कर दें
हवा-ओ-हिर्स-ओ-हवस की सब गर्द साफ़ कर दें
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मंतक़ी काँटे पे रखता है कलाम-ए-दिल-पज़ीर
काश इस नुक्ते को समझे तेरी तब-ए-हर्फ़-गीर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तुम गुमराही फैलाओ हम क़ुरआन सुनाते जाएँगे
तुम हिर्स बढ़ाते जाओ हम ईमान बढ़ाते जाएँगे
रेहान अल्वी
नज़्म
औरों की क्या कहिए ख़ुद मेरा दिल भी अँगारों का मतबख़ है
सदा मिरी आँखों में इक वो कशिश दहकती है जो