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नज़्म
ये ख़दशा बरमला लेकिन वो शर्मीली निगाहें राहत-ए-जाँ हैं
सिमटती हैं तो काले पानियों का ख़ौफ़ बढ़ता है
शबनम मुनावरी
नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने