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नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हमेशा से बपा इक जंग है हम उस में क़ाएम हैं
हमारी जंग ख़ैर ओ शर के बिस्तर की है ज़ाईदा
जौन एलिया
नज़्म
हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयाम-ए-ज़िंदगी लाया
ख़बर देती थीं जिन को बिजलियाँ वो बे-ख़बर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दश्त-ए-पुर-ख़ार को फ़िरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था